मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

स्वस्थ्य, रोग और आत्म-घृणा

Health, illness and self-hatred

स्वस्थ्य या सेहत से आशय है की शरीर अपना कार्य या जीवन के लिए ज़रूरी गतिविधियां कितनी दक्षता से पूरी कर पा रहा है. बीमारी ऐसी अवस्था है जिसमे हमारे शरीर की दक्षता और उसकी कार्यक्षमता में भारी कमी आ जाती है. स्वाथ्यविदों की अगर मानें तो पूरी तरह निरोगी मनुष्य मिलना लगभग असंभव है.

या कह सकते हैं की कोई भी न तो पूरी तरह स्वस्थ होता है और न ही पूरा बीमार. हम सभी बिलकुल अलग और अपनी ही तरह के स्वस्थ्य और बीमारी के मेल से बना जीवन जी रहे हैं. और हम सभी शरीर एवं भावनाओं दोनों ही स्तरों पर विभिन्न योग्यताओं व अयोग्यताओं का मिश्रण हैं, यानी हमारी कुछ बातें हमारी ताकत है तो कुछ हमारी कमियां.

जैसे जैसे हम परिपक्व होते जाते हैं, हमें एहसास होता है की हम अपनी क्षमताओं और योग्यताओं के लिए तो पसंद किये जाते हैं, पर दुनिया को हमारी अक्षमता और अयोग्यताएं नापसंद हैं. परिवार में, खेल के मैदान पर, स्कूल में और काम पर यही देखने में आता है.

कभी कभी यही बात हमारे डॉक्टरों के साथ भी होती है, खासकर तब, जब हमारी अक्षमता उन्हें हैरानी में डाल देती है या हमारी समस्या उन्हें उनकी अयोग्यता की याद दिला देती है.

इसके समाधान के लिए हम यह करते हैं की हम अपनी अक्षमता और अयोग्यताएं सारी दुनिया से छिपाते हैं, धीरे धीरे खुद से भी छिपाने लग जाते हैं. अब यही छिपने-छिपाने की पहेली हमारे अपने आत्मसम्मान और दूसरों के साथ हमारे संबंधों में दरारें डाल देती है. हम समाज से अन्दर ही अन्दर डरना शुरू कर देते हैं हैं और फिर स्वयं से भी घृणा करने लग जाते हैं.

आत्म-घृणा या खुद को नापसंद करना एक ऐसा रोग है जो हमें अन्दर से बीमार कर देता है. इसके कारण न तो हम मदद के रास्ते खोजते है, न ही कहीं से सहायता लेने की हमारी सामर्थ्य रह जाती है. और फिर आज तो लगभग सभी को किसी न किसी सहायता की ज़रूरत है.

सवाल यह है की हम इस आत्म-घृणा से खुद को कैसे मुक्त करें?

सबसे पहले तो हम अपनी कमजोरियों पर खुले दिमाग से सोचना शुरू करें, भले ही दुनिया हमारी कमजोरियों स्वीकार करने को राज़ी हो या न हो. यानी की हमें खुद को स्वीकार करना सीखना होगा. इसके बाद ही हम अपनी अक्षमता और कमजोरियों से लड़ सकते हैं. पर पहले तो हमें खुद ही अपनी परवाह करना और अपनी ज़िम्मेदारी लेना सीखना होगा.

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