मंगलवार, 14 जुलाई 2009

आयुर्वेद में सात्विक, राजसिक एवं तामसी आहार

Satvik, Rajasik and Tamasik Food

भोजन शरीर तथा मन-मस्तिष्क पर काफी गहरा प्रभाव डालता है, आयुर्वेद में आहार को अपने चरित्र एवं प्रभाव के अनुसार सात्विक, राजसिक या तामसिक रूपों में वर्गीकृत किया गया है. कोई कैसा भोजन पसंद करता है यह जानकर उसकी प्रकृति व स्वाभाव का अनुमान लगाया जा सकता है.


सात्विक भोजन

सात्विक भोजन सदा ही ताज़ा पका हुआ, सादा, रसीला, शीघ्र पचने वाला, पोषक, चिकना, मीठा एवं स्वादिष्ट होता है. यह मस्तिष्क की उर्जा में वृद्धि करता है और मन को प्रफुल्लित एवं शांत रखता है, सोचने-समझने की शक्ति को और भी स्पष्ट बनाता है. सात्विक भोजन शरीर और मन को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखने में बहुत अधिक सहायक है.

गाय का दूध, घी, पके हुए ताजे फल, बादाम, खजूर, सभी अंकुरित अन्न व दालें, टमाटर, परवल, तोरई, करेला जैसी सब्जियां, पत्तेदार साग सात्विक मानी गयीं हैं. घर में सामान्यतः प्रयोग किये जाने वाले मसाले जैसे हल्दी, अदरक, इलाइची, धनिया, सौंफ और दालचीनी सात्विक होते हैं.

सात्विक व्यक्तित्व

जो व्यक्ति सात्विक आहार लेते हैं उनमें शांत व सहज व्यवहार, स्पष्ट सोच, संतुलन एवं आध्यात्मिक रुझान जैसे गुण देखे जाते हैं. सात्विक व्यक्ति आमतौर पर शराब जैसे व्यसनों, चाय-कॉफी, तम्बाकू और मांसाहारी भोजन जैसे उत्तेजक पदार्थों से परहेज करते हैं.



राजसिक भोजन

राजसिक आहार भी ताजा परन्तु भारी होता है. इसमें मांसाहारी पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडे, अंकुरित न किये गए अन्न व दालें, मिर्च-हींग जैसे तेज़ मसाले, लहसुन, प्याज और मसालेदार सब्जियां आती हैं. राजसिक भोजन का गुण है की यह तुंरत पकाया गया और पोषक होता है. इसमें सात्विक भोजन की अपेक्षा कुछ अधिक तेल व मसाले हो सकते हैं. राजसिक आहार उन लोगों के लिए हितकर होता है जो जीवन में संतुलित आक्रामकता में विश्वास रखते हैं जैसे सैनिक, व्यापारी, राजनेता एवं खिलाड़ी.

राजसिक आहार सामान्यतः कड़वा, खट्टा, नमकीन, तेज़, चरपरा और सूखा होता है. पूरी, पापड़, बिजौड़ी जैसे तले हुए पदार्थ , तेज़ स्वाद वाले मसाले, मिठाइयाँ, दही, बैंगन, गाजर-मूली, उड़द, नीबू, मसूर, चाय-कॉफी, पान राजसिक भोजन के अर्न्तगत आते हैं.

राजसिक व्यक्तित्व

राजसिक आहार भोग की प्रवृत्ति, कामुकता, लालच, ईर्ष्या, क्रोध, कपट, कल्पना, अभिमान और अधर्म की भावना पैदा करता है. राजसिक व्यक्तित्व वाले लोग शक्ति, सम्मान, पद और संपन्नता जैसी चीज़ों में रूचि रखते हैं. इनका अपने जीवन पर काफी हद तक नियंत्रण होता है; ये अपने स्वार्थों को सनक की हद तक नहीं बढ़ने देते. राजसिक व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं और अपने जीवन का आनंद लेना जानते हैं. राजसिक व्यक्ति अक्सर ही अपनी जीभ को संतुष्ट करने के लिए अलग अलग व्यंजनों की कल्पना करते रहते हैं. इनकी भूख तब तक नहीं मिटती जब तक की इनका पेट मसालेदार पदार्थों से पूरी तरह न भर जाए और जीभ तेज स्वाद से जलने न लगे.


तामसिक भोजन

तामसिक आहार में ऐसे खाद्य पदार्थ आते हैं जो ताजा न हों, जिनमे जीवन शेष न रह रह गया हो , ज़रूरत से ज्यादा पकाए गए हों, बुसे हुए पदार्थ या प्रसंस्कृत भोजन अथवा प्रोसेस्ड फ़ूड -- यानि ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमे मैदा, वनस्पति घी और रसायनों का प्रयोग हुआ हो जैसे पेस्ट्री, पिज्जा, बर्गर, ब्रेड, चॉकलेट, सॉफ्ट ड्रिंक, तंदूरी रोटी, रुमाली रोटी, नान, बेकरी उत्पाद, तम्बाकू, शराब, डिब्बाबंद फ्रोज़न फ़ूड, ज़रूरत से ज्यादा चाय-कॉफी, केक, अंडे, जैम, कैचप, नूडल्स, चिप्स समेत सभी तले हुए पदार्थ, अचार, आइसक्रीम-कुल्फी, पुडिंग, समोसा, कचौरी, चाट और ज्यादातर फास्ट फ़ूड कहा जाने वाला आहार. सभी नमकीन, मिर्च-मसालेदार व्यंजन, ज्यादा तले हुए पदार्थ तामसिक आहार की श्रेणी में आते हैं.

मांस, मछली और अन्य सी-फ़ूड, वाइन, लहसुन, प्याज और तम्बाकू परंपरागत रूप से तामसिक माने जाते रहे हैं.

तामसिक व्यक्तित्व

तमस हमारी जीवनी शक्ति में अवरोध पैदा करता है जिससे की धीरे धीरे स्वस्थ्य और शरीर कमज़ोर पड़ने लग जाता है. तामसिक आहार लेने वाले व्यक्ति बहुत ही मूडी किस्म के हो जाते हैं, उनमें असुरक्षा की भावना, अतृप्त इच्छाएं, वासनाएं एवं भोग की इच्छा हावी हो जाती है; जिसके कारण वे दूसरों से संतुलित तरीके से व्यवहार नहीं कर पाते. इनमे दूसरों को उपयोग की वस्तु की तरह देखने, और किसी के नुकसान से कोई सहानुभूति न रखने की भावना जाती है. यानि की ऐसे लोग स्वार्थी और खुद में ही सिमट कर रह जाते हैं. इनका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और ह्रदय पूरी शक्ति से काम नहीं कर पाता और इनमें समय से काफी पहले ही बुढापे के लक्षण दिखने में आने लगते हैं. ये सामान्यतः कैंसर, ह्रदय रोग, डाईबीटीज़, आर्थराईटिस और लगातार थकान जैसी जीवनशैली सम्बन्धी समस्याओं से ग्रस्त पाए जाते हैं.

सात्विक, राजसिक और तामसिक यह केवल खाद्य पदार्थों के ही गुण नहीं है --- बल्कि जीवन जीने व उसे दिशा देने का मार्ग भी हैं.

शुक्रवार, 5 जून 2009

कब्ज़ का प्राकृतिक इलाज

आज के समय में कब्ज़ से बड़ी संख्या में लोग पीड़ित हैं. हालाँकि कब्ज़ की समस्या किसी को भी हो सकती है, पर वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया गया है की स्त्रियाँ और पैंसठ वर्ष की आयु से अधिक के लोग इससे ज्यादा पीड़ित रहते हैं. महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान, प्रसूति या सर्जरी के बाद, और कुछ विशेष प्रकार की दवाएं (जैसे दर्दनिवारक) लेने के उपरांत भी कब्ज़ की समस्या कुछ अधिक देखने में आती है. कब्ज़ से पीड़ित होना कष्टकारी भी हो सकता है और कई बार यह शर्मिंदगी का कारण भी बन सकता है. पर ज़्यादातर मामलों में कब्ज़ एक अस्थाई समस्या ही होती है, अगर इसके कारणों, रोकधाम और इलाज के बारे में जानकारी ले ली जाए तो इससे आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है.

कब्ज़ होने के कई कारण हैं - उदहारण के लिए; पर्याप्त शारीरिक व्यायाम ना करना, रेशेदार पदार्थों (फाइबर) का कम सेवन, कम पानी पीना, अनियमित भोजन, खाना ठीक से ना चबाना, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (रिफाइंड फ़ूड) जैसे मैदा, वनस्पति घी, चीज़ का अधिक सेवन. इनके आलावा भी कई कारण हो सकते हैं कब्ज़ के. इस लेख में हम विषयवस्तु को कब्ज़ के प्राकृतिक और घरेलू उपचार तक केन्द्रित रखेंगे.

1. पानी नियमित रूप से पियें. दिन में कम से कम छः गिलास पानी आपके पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में सहायता करेगा. ज्यादा पानी पीने से आंतों में नमी बनी रहती है जिससे की भोजन जल्दी पचता है और आंतें अपशिष्ट पदर्थों सरलता से विसर्जित करती हैं. ध्यान रखें की शराब और चाय, कॉफी या कोला पेशाब की मात्र बढा सकते हैं जिससे की शारीर में जल की कमी हो सकती है.

2. भुनी हुई उड़द (छिलके सहित) गेहूं की रोटी में मिलाकर खाने से कब्ज़ में आराम मिलता है.

3. गुड़ भी एक काफी अच्छा और प्राकृतिक कब्ज़निवारक और दस्तावर पदार्थ है. हालाँकि इसका स्वाद बहुत ज्यादा मीठा होता है, इसे आप दूध या भोजन के साथ ले सकते है. रोज़ दो चम्मच गुड़ कब्ज़ के लिए पर्याप्त है. पर ध्यान रखें की गुड शक्कर का ही एक प्रकार है, इसमें कैलोरी शक्कर जितनी ही होती है.

4. पत्तागोभी उबाल कर पानी बचा लें. यह पत्तागोभी का पानी दिन में दो बार पियें. यह कब्ज़ का बहुत ही असरदार उपचार है.

5. नाश्ते से पहले और रात के भोजन के बाद आम का सेवन करें. आम कब्ज़ में बहुत ही लाभदायक है. बेर या अंजीर का सेवन भी आप कब्ज़ से रहत पाने के लिए कर सकते हैं.

6 अगर आप पुरानी कब्ज़ से पीड़ित है तो पानी में रातभर भिगोकर रखे अंजीर सुबह-सुबह सेवन करें और बचे हुए पानी को पी लें. भले ही कितनी भी पुरानी कब्ज़ हो यह उपाय आपको शौचालय की ओर भागने मजबूर कर देगा.

7. ताम्बे के बर्तन में रातभर रखा हुआ पानी सुबह उठाते ही पियें. इस उपाय को भारतीय गांवों में सामान्यतः प्रयोग किया जाता है.

8. गेंहू के चोकर का प्रयोग करके देखें, सफ़ेद चावल के स्थान पर पसई के चावलों (ब्राउन राइस) का प्रयोग करें. जिन खाद्य पदार्थों में चोकर (फाइबर) की कम मात्रा होती है वे कब्ज़ पैदा करने में विशेष भूमिका निभाते हैं. चोकर और छिलके वाला अनाज मोटे रेशों से भरपूर होता है. रेशे (फाइबर) पाचन तंत्र में बिना पचे ही रह जाते है. फाइबर का काम आंतों के अपशिष्ट पदार्थ को नम और भारी बनाना है, जिससे की मल आंतों से आसानी से और जल्दी निकल जाता है.

9. फलों एवं सब्जियों का जितना अधिक हो सके सेवन करें. इसमें घुलनशील रेशों की मात्रा अधिक होती है.

10. नियमित रूप से कुछ शारीरिक व्यायाम करें. टहलना, साईकिल चलाना या जिम या योग -- किसी भी प्रकार के व्यायाम द्वारा अपने शारीर को गतिशील रखें. कम मेहनत कब्ज़ का प्रमुख कारण है.

11. भोजन के पहले एक चम्मच अलसी का ताज़ा चूर्ण पानी के साथ लें. इसमें फाइबर की भरपूर मात्रा होती है. यह कब्ज़ का सबसे प्राकृतिक और रामबाण इलाज है.

12. नीबू का दो चम्मच ताज़ा रस कुनकुने पानी के साथ दिन में दो बार लें.

ये कुछ घरेलू नुस्खे है, जो सदियों से कारगर हैं, आपके रसोईघर में ये सारी वस्तुएं मिल जाएँगी. अगर इनसे भी आपकी कब्ज़ की समस्या पर कोई असर पड़ता ना दिखे तो तुंरत किसी अच्छे चिकित्सक से संपर्क करें. मेडिकल स्टोर्स पर कब्ज़ के लिए कई औषधियां आप बिना चिकित्सक की सलाह के खरीद सकते हैं, पर यह दवाएं घरेलू नुस्खों जितनी सुरक्षित नहीं होती. कब्ज़ एक जीवनशैली से सम्बंधित रोग है, इसका इलाज प्राकृतिक रूप से करना ही ठीक है.

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

बढती उम्र और बुढापा रोका जा सकता है


यह एक आम अनुभव है की उम्र बढ़ने के साथ साथ हमारी कुछ क्षमताएं कम होने लगती हैं. पर अब वैज्ञानिक और विशेषज्ञ ऐसे उपायों की खोज में लगे हैं जिनके कारण कुछ लोग अस्सी वर्ष की आयु के बाद भी चुस्त और तंदुरुस्त बने रहते हैं; वहीँ कुछ कम उम्र के लोग भी समय से पहले ही बूढे और कमज़ोर दिखने लगते हैं. यहाँ कई नई रिसर्च से समेटी गई कुछ ऐसी जानकारियां हैं जो आपके जीवन में सक्रियता से भरे कई और साल जोड़ सकती हैं.

1.
ज्यादा मत खाइए : ओकिनावा (जापान) ------ जो की दुनिया में सबसे ज्यादा जीने वालों का घर माना जाता है ------ में पाया गया की सौ वर्ष से ज्यादा जीने वाले सभी लोग जीवनभर भूख से कुछ कम ही आहार लेते रहे हैं. औसतन ये लोग 80% पेट भर जाने पर ही खाना रोक दिया करते हैं. इनके कम भोजन और अधिक जीने में गहरा संबंध है : सेंट लुईस विश्वविद्यालय के एक शोध में वैज्ञानिकों ने पाया की कम भोजन और अधिक व्यायाम दोनों ही वजन कम करने में एक से असरदार हैं. पर कम भोजन करना एक और प्रभाव द्वारा आपका वज़न कम करता है. भूख से कम भोजन आपकी थाईराइड ग्रंथियों में T3 हारमोन का उत्पादन कम कर देता है, यही हारमोन आपके शारीर में चर्बी जलाने की क्षमता को कम करता है. शोधकर्ताओं का यह भी मानना है की शरीर में T3 के कम उत्पादन से बूढे होने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है.

2.
अपना दिमाग दौड़ाएं : डॉ. गाउला, जिन्होंने अस्सी की उम्र के बाद भी दिमागी रूप से चुस्त दुरुस्त लोगों पर शोध करके पाया है की, उम्र के नवें दशक में भी मनोवैज्ञानिक परीक्षणों में पचास वर्ष के लोगों जैसा ही प्रदर्शन करने वाले वृद्धों की मस्तिष्कीय संरचना में कम गठानें पड़ी होती हैं ------यह मस्तिष्क के अंदरूनी हिस्सों में प्रोटीन का अनावश्यक जमाव है, जिसे अल्जाइमर से जोड़कर देखा जाता है ------ इससे संकेत मिलता है इनके मष्तिष्क में कोई ऐसी सुरक्षा प्रणाली काम कर रही है जो आम लोगों में नहीं होती. बहरहाल, वैज्ञानिक जब तक इस पहेली को सुलझाएं आप अपने मस्तिष्क को बचाने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं. कोई विदेशी भाषा सीखें, गिटार, सितार या बांसुरी बजाना शुरू कर दें ------ यहाँ तक की नई गलियों और अनजाने रास्तों में वाहन चला कर रास्तों को याद करना भी आपके दिमाग की धीमी मौत रोक सकता है.

3.
अंगूर से स्नान : आप में से कुछ लोगों ने शायद रिवर्सीटॉल के बारे में सुना हो. यह एक एंटीऑक्सीडेंट है जो लाल अंगूर में पाया जाता है, शोध निष्कर्ष संकेत देते हैं की रिवर्सीटॉल भी उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है. अभी हाल में ही हुए अध्ययनों में पाया गया है की जिन चूहों को रिवर्सीटॉल की भरपूरमात्रा दी गई उनकी हड्डियाँ अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत थीं उनके शारीर और मस्तिष्क के बीच ज्यादा अच्छा तालमेल था और उनमे दिल की बीमारी, शारीर में सूजन, मोतियाबिंद जैसी 'बुढापे की बीमारियां' कम देखी गईं. वैज्ञानिक बिरादरी ने अभी यह पूरी तरह नहीं माना है की रिवर्सीटॉल मनुष्यों पर भी उतनी ही कारगर हो सकती है, पर न्यूट्रीशनिस्ट्स का मानना है की लाल अंगूरों में वास्तव में स्वस्थ्य का खजाना छिपा हुआ है.

4.
चर्बी बढ़ने ना दें : पिछले वर्ष प्रकाशित हुए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने तीस सालों तक 6583 लोगों पर नज़र रखने के बाद पाया की बढ़ी हुई तोंद बुढापे में याददाश्त चले जाने (डेमेंटिया) के खतरे को तीन सौ प्रतिशत तक बढा सकती है.

5.
शाकाहारी बनें : सौ वर्ष से ज्यादा जीने वालों के अध्ययन में पाया गया की उनमे से सभी लोग मांस का कम से कम प्रयोग करने वाले या पूर्ण शाकाहारी हैं, इन लोगों के आहार में सब्जी, फलों और सूखे मेवे का प्रतिशत काफी अधिक है.

बुधवार, 15 अप्रैल 2009

मधुमेह : परिचय और नियंत्रण

Madhumeh : Parichay aur Niyantran

मधुमेह
को दो श्रेणियों में बांटा गया है; टाइप-1 और टाइप-2.

डाईबिटीज़ मैलीटस टाइप-1 -- इसे जन्मजात या आनुवंशिक कारणों कारणों से होने वाला मधुमेह (इंसुलिन निर्भर मधुमेह) भी कहा जाता है; टाइप-1 मधुमेह क्यों होता है, इसका पूरा पता मेडिकल साइंस अभी तक नहीं लगा पाया है. इस प्रकार के मधुमेह में इंसुलिन का बनना या तो एकदम कम हो जाता है या फिर पूरी तरह बंद हो जाता है. इसका कारण है की शारीर की रोगप्रतिरोधक प्रणाली इंसुलिन पैदा करने वाली पाचक ग्रंथि की कोशिकाओं पर हमला कर उन्हें ख़त्म कर देती है, जिससे की इंसुलिन बनना कम हो जाता है या रुक जाता है.

डाईबिटीज़ मैलीटस टाइप-2 -- इसे व्यस्क अवस्था में होने वाला, या मोटापे से संबंधित मधुमेह भी कहा जाता है, इसे इंसुलिन अ-निर्भर मधुमेह (Non Insulin Dependent Diabetes Mellitus) के नाम से भी जाना जाता है, टाइप-2 मधुमेह में इंसुलिन पैदा करने वाली कोशिकाएं रक्त शर्करा के प्रति प्रतिक्रिया देना बंद कर देती हैं. जैसे जैसे
समस्या बढती जाती है, इंसुलिन का उत्पादन शरीर में कम होता जाता है.

गर्भावस्था में होने वाला मधुमेह (गेस्टेस्नल डाईबिटीज़): इसे अक्सर टाइप-3 डाईबिटीज़ भी कहा जाता है, हलाँकि डॉक्टर टाइप-3 शब्द का प्रयोग नहीं करते. इस प्रकार का मधुमेह महिलाओं में गर्भावस्था में देखने में आता है, इसके लक्षण और कारण टाइप-2 मधुमेह जैसे ही होते हैं, यानी यह इंसुलिन के प्रति कोशिकाओं के
असंवेदनशील होने के कारण होता है. इसके परिणामस्वरुप पेट में शिशु का वज़न असामान्य रूप से बढ़ा हुआ महसूस होना, प्रसूति के बाद शिशु को घातक पीलिया और रक्त शर्करा की कम मात्रा जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
बहुत कम मामलों में में गर्भस्थ शिशु की मौत भी होती देखी गई है.

मधुमेह का प्रकार कोई भी हो, इसमें मरीज़ के रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर असामान्य रूप से बढ़ जाता है. इस असामान्यता का कारण इंसुलिन की कमी होना या इसका
ज़रूरत से ज्यादा स्राव होना है. अगर सही तरीके से इलाज न किया जाए तो मरीज़ में कई जटिलताएं जन्म ले सकती हैं (जैसे की दिल का दौरा, हाथ या पैर में सड़न हो जाना, अंधापन, और नपुंसकता).

मधुमेह के लक्षण : इस बीमारी की शुरुआत इसके प्रकार पर निर्भर करती है. टाइप-2 के अधिकतर केसों में लक्षण धीरे धीरे प्रगट होते हैं, बीमारी सामने आते आते कुछ साल बीत जाते हैं . हालांकि, टाइप-1 केसों में धीमी शुरुआत होती है, खासकर बच्चों में, पर लक्षण तेजी से सामने आते हैं, मात्र कुछ सप्ताह या महीनों में ही.

मधुमेह के प्रारंभिक लक्षण हैं:

*बार बार प्यास लगना
*
बार बार पेशाब
जाना
* तेजी से वजन घटना
*
बहुत ज्यादा भूख लगना
*
बिना किसी खास वजह के ही कमजोरी या थकन महसूस होना

मधुमेह का पता कैसे लगाया जाता है?: मधुमेह के निदान की कई विधियां हैं, पर चिकित्सक कुछ ही विधियों को प्रयोग में लाते हैं.

* स्वस्थ्य की जांच
* उच्च रक्त शर्करा की जांच
* मधुमेह से सम्बंधित नए लक्षण और चिन्हों की पहचान

मधुमेह की जांच अक्सर इसके लक्षण दिखने के बाद ही की जाती है. मरीजों को पहले एक डाईबिटीज़ जांच से गुज़रना होता है, जिसका विवरण और विधि अलग अलग देशों वहां की चिकित्सा निति के अनुसार भिन्न हो सकती है. कुछ मरीजों को रेंडम ग्लूकोज़ टेस्ट, फास्टिंग ग्लूकोज़ व इंसुलिन, या 75 ग्राम ग्लूकोज़ लेने के दो घंटे बाद ग्लूकोज़ लेना होता है. कभी कभी डॉक्टर औपचारिक रूप से ग्लूकोज़ टोलरेंस टेस्ट द्वारा भी मधुमेह का पता लगाते हैं.


४० से ५० की आयु के भारतीय या दक्षिण एशियाई मूल के लोगों को अपना मधुमेह परीक्षण अवश्य करा लेना चाहिए. यह जांच उनके लिए और भी ज़रूरी है जिन्हें मोटापे की समस्या है, परिवार में कोई और भी मधुमेह से पीड़ित है.

मधुमेह का जोखिम किन चीज़ों से बढ़ सकता है?

मधुमेह का जोखिम बढ़ने वाले बहुत से कारक हो सकते हैं, और ये अगर मिल जाएं तो डाईबिटीज़ मैलीटस होने की संभावना बढ़ा देती हैं. हालांकि, मधुमेह का असली
कारण किसी को भी पूरी तरह नहीं पता है. नीचे दिए गए कारण मधुमेह का जोखिम बढ़ाने वाले माने जाते हैं.

मोटापा -- मधुमेह के सबसे खतरनाक कारणों में से एक है मोटापा. डाईबिटीज़ टाइप-2 ज्यादातर उन्ही लोगों में देखने में आता है जिनका बॉडी मास इंडेक्स (बीएम्आर) 25 से ज्यादा हो, इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला की वजन नियंत्रण में रखना मधुमेह की रोकधाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.


कमर का घेरा -- एक और कारक जो थोड़ा-बहुत मोटापे से ही सम्बंधित है. वैज्ञानिक शोध बताते हैं की कमर का घेरा मधुमेह की मोटापे से भी ज्यादा अच्छी तरह भविष्यवाणी कर सकता है. जिन लोगों में चर्बी पेट और कमर में ज्यादा होती है (सेब के आकर का शरीर) उन्हें मधुमेह होने की संभावना ज्यादा होती है. जिनकी चर्बी जांघों, नितम्बों एवं कूल्हों में जमा होती है वे लोग मधुमेह के शिकार कम बनते हैं (नाशपाती के आकार का शरीर).

शारीरिक श्रम न करना -- कसरत का वजन और कमर के घेरे से सीधा सम्बन्ध है. तो, शारीरिक श्रम की कमी भी मधुमेह का खतरा बढ़ा देती है.

आयु -- हालांकि कुछ प्रकार के मधुमेह बच्चों में भी देखने में आते हैं, पर जैसे जैसे इन्सान की उम्र बढती जाती है मधुमेह का खतरा भी बढ़ता चला जाता है. ४० वर्ष की आयु में अधिकतर मरीजों में मधुमेह का पता चलता है.

पारिवारिक पृष्ठभूमि -- इसमें पारिवारिक इतिहास एवं नस्ल शामिल हैं. वैज्ञानिक मधुमेह और आनुवंशिकी में कोई सीधा सम्बन्ध अभी तक नहीं खोज सके हैं, पर वैज्ञानिक अध्ययनों में पता चला है की अगर आपके परिवार में किसी को मधुमेह हो तो आपको भी यह बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है. और जहाँ तक नस्ल की बात है, मधुमेह ज्यादातर आफ्रो-अमेरिकन, लैटिन-अमरीकी, रेड-इंडियन एवं दक्षिण एशियाई लोगों में ज्यादा देखने में आता है.

मधुमेह से बचाव के उपाय:

स्वस्थ जीवनशैली मधुमेह की रोकधाम में मदद कर सकती है. अगर आपके परिवार में मधुमेह आनुवंशिक रूप से मौजूद हो तो भी, आहार में उचित बदलाव और व्यायाम द्वारा इसे रोकने में मदद मिल सकती है. अगर आप पहले से ही मधुमेह से पीड़ित हैं, यही जीवनशैली में सुधार आपको इस बीमारी की संभावित जटिलताओं से बचा सकता है.

  • स्वस्थ आहार: कम चर्बी (Fat) एवं कम कैलोरी वाला आहार चुनें. फल, सब्जियां और अनाज की मात्रा भोजन में ज्यादा रखें. खाने में नियमित रूप से बदलाव करते रहें, जिससे की बोरियत महसूस न हो.
  • शारीरिक परिश्रम बढा दें: प्रतिदिन कम से कम ३० मिनट हल्का व्यायाम करने का लक्ष्य बनाएं. सबेरे टहलने निकल जाएं, साइकिल चलाएं, बागवानी करें. अगर आप लगातार व्यायाम नहीं कर सकते, तो इसे पूरे दिन में कई हिस्सों में बांट लें.
  • वज़न कम करें: अगर आपका वज़न अधिक है तो कुछ किलो भार कम करना भी मधुमेह के खतरे को काफी कम कर सकता है. अपना वज़न नियंत्रण में रखें, अपनी खाने और व्यायाम की आदतों में में स्थाई परिवर्तन लाने का प्रयास करें. घटे हुए वज़न से लाभ जैसे की स्वस्थ्य ह्रदय, बढ़ी हुई मानसिक एवं शारीरिक उर्जा अपना आत्मविश्वास के बारे में जानने से आप अपना मनोबल स्थाई रूप से बढ़ाए रख सकते हैं.

जीवनशैली और घरेलू-उपाय


  • अपनी मधुमेह की समस्या से निबटने के लिए कमर कस लें: मधुमेह के विषय में जितना जान सकें, जहाँ से भी जान सकें, जानने का प्रयास करें. स्वास्थ्यवर्धक आहार और व्यायाम को दैनिक जीवन का अंग बना लें. ऐसे लोगों से दोस्ती बढाएं जो आपको मधूमेह के विषय में कुछ और जानकारी दे सकते हों. जब भी ज़रूरत पड़े अपने डॉक्टर से संपर्क साधने में देर न करें.

  • पहचान चिन्ह साथ रखें: कोई बाजूबंद, लॉकेट या आसानी से दिखने वाला कोई पहचान चिन्ह --- जिसमे आपके मधुमेह के विषय में जानकारी हो --- हमेशा साथ रखें. अपनी ग्लुकगोन किट हमेशा पास रखें जिससे की आपात स्थिति में आपकी रक्त शर्करा को नियंत्रित किया जा सके --- अपने मित्रों एवं परिवार के सदस्यों को इसके उपयोग की जानकारी दे दें.
  • साल में कम से कम एक बार आंखों एवं स्वास्थ्य की जांच कराएं: आपकी नियमित डाईबीटीज़ जांच कभी भी स्वस्थ्य की पूरी जांच और आंखों की नियमित जांच की जगह नहीं ले सकती. शारीर की पूरी जांच में डॉक्टर अन्य स्वस्थ्य संबंधी जांच के आलावा मधुमेह से संबंधित समस्याओं को ढूंढने का प्रयास करेंगे. आंखों के डॉक्टर रेटिना संबंधी किसी क्षती, मोतियाबिन्द और ग्लूकोमा की जांच करेंगे.
  • टीके समय पर लगवाते रहें: उच्च रक्त शर्करा आपकी रोगप्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर कर सकती है. हर दस साल में एक बार टिटेनस बूस्टर टीका ज़रूर लगवाएं. डॉक्टर आपको निमोनिया वेक्सीन या अन्य टीकों की सलाह भी दे सकते हैं.
  • दांतों की सुरक्षा: मधुमेह के कारण आपके मसूड़ों के संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाती है. दांतों की दिन में दो बार ब्रश से सफाई करें. साल में एक बार डेंटिस्ट से जांच कराएं. अगर आपके मसूड़ों में सूजन या लाली है या उनसे खून आ रहा हो तो तुंरत दंतचिकित्सक से संपर्क करें.
  • पैरों का ध्यान रखें: पैरों को रोज़ गुनगुने पानी से धोएं. उन्हें नर्म तौलिये से सुखाएं, खासकर अंगुलियों के बीच, और उनमें मोइश्चराइज़र या कोल्ड क्रीम लगाएं. प्रतिदिन फफोलों, कटने, घाव, सूजन और लाली की जांच करें. ऐसी कोई समस्या अगर कुछ दिनों ठीक न हो तो अपने डॉक्टर डॉक्टर से संपर्क करें.
  • अपना रक्तचाप और कोलेस्ट्रोल नियंत्रण में रखें. स्वास्थ्यवर्धक आहार एवं नियमित व्यायाम से रक्तचाप और कोलेस्ट्रोल नियंत्रित रहते हैं. कई मामलों में दवाईयों की भी ज़रूरत पड़ सकती है.
  • अगर आप धुम्रपान करते हैं या किसी और रूप में तम्बाकू का सेवन करते हैं, तो यह आदत छोड़ने के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें. धुम्रपान से मधुमेह संबंधित कई समस्याएँ पैदा हो सकती हैं, जैसे दिल का दौरा, नसों और तंत्रिकाओं में समस्या और गुर्दों से संबंधित रोग. वास्तव में, अमेरिकन डाईबेटीज़ एसोसिएशन के अनुसार, धुम्रपान करने वाले मधुमेह रोगीयों की दिल की बीमारी से मौत की संभावना धुम्रपान न करने वाले मधुमेह रोगीयों से तीन गुना अधिक होती है. धुम्रपान अथवा तम्बाकू संबंधी अन्य आदतों को छोड़ने के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें.
  • अगर आप शराब पीते हैं, तो ज़िम्मेदारी से पिएं. अल्कोहल रक्त शर्करा बढा या घटा सकती है, निर्भर करता है की आप कितना पीते हैं या पीने के साथ साथ कितना खाते हैं. अगर आप पीना ही चाहें तो, कम मात्रा में पिएं और भोजन के साथ पिएं. याद रखिए, अल्कोहल की कैलोरी भी आपके मोटापे में योगदान देती है.
तनाव से सावधान रहें: अगर आप तनाव में हैं तो आसानी से मधुमेह नियंत्रण की दैनिक गतिविधियों से आपका ध्यान हट सकता है. काफी समय से चले आ रहे तनाव से उत्पन्न होने वाले हारमोन इंसुलिन की कार्यप्रणाली में बाधा डालते हैं. जिससे की बात और बिगड़ जाती है. इसे नियंत्रित करने के लिए कुछ सीमाएं तय करें. साथ ही अपनी प्राथमिकताएँ तय करें. प्राणायाम की सरल तकनीकें सीखें और गहरी पूरी नींद लें.


और आखिर में सबसे महत्वपूर्ण बात,

सकारात्मक सोचें. मधुमेह एक गंभीर समस्या है, पर इसे नियंत्रित किया जा सकता है. अगर आप अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहे हैं तो आप मधुमेह के साथ भी एक सक्रिय एवं स्वस्थ जीवन जी सकते हैं.


हैल्थ टिप्स: कंप्यूटर प्रयोग करने वालों के लिए


ममें से कई लोग घंटों कंप्यूटर पर बिताते हैं; कुछ इसीलिए की उनका काम ही कंप्यूटर पर होता है, और कुछ इस कारण से की  उन्हें कंप्यूटर पर समय बिताना पसंद है.

आप इन दोनों में से किसी श्रेणी में आते हों, कंप्यूटर का सही तरीके से और स्वस्थ्य को ध्यान में रखते हुए कैसे प्रयोग किया जाए यह जानकर  आप अपनी सेहत का ख्याल रख सकते हैं.

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आँखों पर जोर न पड़ने दें

जो चित्र, फोटोग्राफ या ग्राफिक्स आप मॉनिटर पर देखते हैं वह एक सेकेण्ड में पच्चीस से अस्सी बार बंद-चालू होते हैं, और आपका मष्तिष्क एवं आंखें दृष्टि को स्थिर करने की प्रक्रिया में स्क्रीन की इस मिचमिचाहट को एक स्थिर चित्र की तरह महसूस करते हैं. जिससे स्क्रीन पर वह चित्र रुका हुआ नज़र आता है.

पर इस तरह के स्क्रीन पर झपकते ग्राफिक्स होते तो अप्राकृतिक ही हैं, इनपर लम्बे समय तक आंखे गड़ाए रखना आपकी आंखों में तनाव या थकान ला सकता है, सिरदर्द या दृष्टिभ्रम जैसी शिकायतें भी देखने में आ सकती हैं.

अपनी आंखों को थकान से बचने के लिए हर पंद्रह मिनट में दृष्टि स्क्रीन से हटा कर  दूर की किसी वस्तु को कुछ देर लगातार देखें  — खिड़की के बाहर, गलियारे के छोर पर या जो भी कोई दूर की वस्तु नज़र आती हो उसे ही कुछ देर लगातार देखने का प्रयास करें; और ध्यान रखें की नज़र पर ज़्यादा ज़ोर नहीं डालें.

दूर की वस्तुएं इस तरह नियमित अंतराल से देखने से आंखों की मांसपेशियों को आराम मिलता है, इसका कारण है की दूर देखने में आपको किसी चीज़ पर आंख गाड़कर नहीं देखना पड़ता. कंप्यूटर पर कार्य करते समय हम आंखों को ज़बरजस्ती फोकस करते हैं, और कुछ अन्तराल में  स्क्रीन से नज़र हटाना आंखों के आसपास की मांसपेशियों को आराम पहुंचाता है.


गहरे हरे रंग को देखने की सलाह इसीलिए दी जाती है क्योंकि यह कम चमक एवं आंखों को आराम पहुंचाने वाला रंग है.

अपनी पीठ का ध्यान रखें

अब चूंकि हमें एक ही स्थिति में घंटो बैठे रहना पड़ता है इसीलिए पहले बैठने का तरीका सुधारना चाहिए.

झुककर बैठने या पीठ की मांसपेशियों पर लगातार ज़ोर डालकर एक ही स्थिति में बैठने से पीठ का लचीलापन कम हो सकता है, साथ ही सोते समय पीठ में गांठें पड़ने और मांसपेशियों में ऐंठन की समस्या हो सकती है.

बैठने के लिए हमेशा ऐसी कुर्सी का चुनाव करें जो पीठ को सहारा देती हो, और जितना हो सके उतना पीठ सहज और सीधी रखकर बैठें. और अगर आपकी कुर्सी इतनी अच्छी नहीं है तो कुर्सी को कभी कभार आगे पीछे झुलाने का प्रयास करें या अपनी स्थिति थोड़ी थोड़ी देर में बदलते रहें.

यह भी संभव न हो तो कुछ अन्तराल में खड़े होकर अंगड़ाई लेने (स्ट्रेच करने) से भी काम चल सकता है.

रिपीटेटिव स्ट्रेन डिसआर्डर (RSD) से बचें

लम्बे समय यानी की कई हफ्तों, महीनों या सालों एक ही तरीके से माउस पकड़ने से रिपीटेटिव स्ट्रेन डिसआर्डर नाम की समस्या पैदा हो सकती है. इसमें हड्डियों के जोड़ लम्बे समय तक होने वाले हल्के तनाव के कारण बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. अगर सही इलाज न मिले तो यह जोडों की समस्या काफी पीड़ादाई और लाइलाज भी साबित हो सकती है.

इससे बचने के लिए जितनी बार भी हो सके अपना हाथ माउस से हटा कर टेबल के नीचे ले जाएं और हथेली के पिछले भाग से ऊपर की ओर दबाव डालें. अब अपना हाथ टेबल के ऊपर ले आएं और अँगुलियों से टेबल पर दबाव डालें.फिर अपनी अँगुलियों को ज़ोर ज़ोर से हिलाएं. इसके बाद कलाई को आगे पीछे दाएं बाएं घुमाएं.

दुसरे शब्दों में कहा जाए तो, कलाई से काम करते समय जिस प्रकार हाथ की स्थिति रहती है उससे बिलकुल दूसरी तरह से हाथों को चलाएं. अगर आपके हाथ में कड़ापन लगे या दर्द महसूस हो तो कलाइयों की इस तरीके से आराम ज़रूर दें.

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गर्दन न अकड़ने दें

गर्दन अकड़ने से बचाने के लिए पहले सुनिश्चित करें की स्क्रीन आपकी आँखों के एकदम सामने रखी हो (आंखों से 90 अंश के कोण पर) . साथ ही, अपनी डेस्क, स्क्रीन और कुर्सी की ऊंचाई इतनी रखें की आपकी गर्दन की मांसपेशियां सहज एवं आरामदायक अवस्था में रहें.

स्क्रीन पर देखते समय गर्दन हलकी सी झुकी रहे तो गर्दन पर तनाव नहीं पड़ता, पर स्क्रीन को ऊपर नीचे जमा कर देख लें की किस ऊंचाई पर स्क्रीन को देखने पर आपकी गर्दन पर जोर नहीं पड़ता.

सही उपकरणों का प्रयोग करें

यह सुनिश्चित कर लें की आपके कंप्यूटर की स्क्रीन स्पष्ट एवं अच्छी क्वालिटी की हो और उसका रेसोल्यूशन उच्चस्तरीय हो. धुंधले अथवा अस्पष्ट चित्र आंखों पर बहुत अधिक तनाव डालते हैं, जिससे के आंखों में थकान और जलन की समस्या हो सकती है.

की-बोर्ड ज्यादा महंगे नहीं आते,  ऐसा की-बोर्ड चुनें जो की उपयोग में आसान हो, और जिसके प्रयोग में ज्यादा जोर न लगाना पड़े, उसका ले-आउट आपके लिए सुविधाजनक हो.

माउस ऐसा लें जो आपकी हथेलियों के माप से ज्यादा बड़ा या ज्यादा छोटा न हो, यानि जो आपके हाथों में ‘फिट’ आता हो और प्रयोग में सहज हो.

अंत में…

ऊपर दी गयी जानकारियां बिलकुल सामान्य सी लग सकती है पर यह आपके शारीर को गंभीर क्षति से बचा सकती हैं.

यह चीज़ें करने में सरल हैं, और इस बात की गारंटी भी की आप आगे आने वाले लम्बे समय तक अपने कंप्यूटर का आनंद उठाते रहेंगे.

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

स्वस्थ्य, रोग और आत्म-घृणा

Health, illness and self-hatred

स्वस्थ्य या सेहत से आशय है की शरीर अपना कार्य या जीवन के लिए ज़रूरी गतिविधियां कितनी दक्षता से पूरी कर पा रहा है. बीमारी ऐसी अवस्था है जिसमे हमारे शरीर की दक्षता और उसकी कार्यक्षमता में भारी कमी आ जाती है. स्वाथ्यविदों की अगर मानें तो पूरी तरह निरोगी मनुष्य मिलना लगभग असंभव है.

या कह सकते हैं की कोई भी न तो पूरी तरह स्वस्थ होता है और न ही पूरा बीमार. हम सभी बिलकुल अलग और अपनी ही तरह के स्वस्थ्य और बीमारी के मेल से बना जीवन जी रहे हैं. और हम सभी शरीर एवं भावनाओं दोनों ही स्तरों पर विभिन्न योग्यताओं व अयोग्यताओं का मिश्रण हैं, यानी हमारी कुछ बातें हमारी ताकत है तो कुछ हमारी कमियां.

जैसे जैसे हम परिपक्व होते जाते हैं, हमें एहसास होता है की हम अपनी क्षमताओं और योग्यताओं के लिए तो पसंद किये जाते हैं, पर दुनिया को हमारी अक्षमता और अयोग्यताएं नापसंद हैं. परिवार में, खेल के मैदान पर, स्कूल में और काम पर यही देखने में आता है.

कभी कभी यही बात हमारे डॉक्टरों के साथ भी होती है, खासकर तब, जब हमारी अक्षमता उन्हें हैरानी में डाल देती है या हमारी समस्या उन्हें उनकी अयोग्यता की याद दिला देती है.

इसके समाधान के लिए हम यह करते हैं की हम अपनी अक्षमता और अयोग्यताएं सारी दुनिया से छिपाते हैं, धीरे धीरे खुद से भी छिपाने लग जाते हैं. अब यही छिपने-छिपाने की पहेली हमारे अपने आत्मसम्मान और दूसरों के साथ हमारे संबंधों में दरारें डाल देती है. हम समाज से अन्दर ही अन्दर डरना शुरू कर देते हैं हैं और फिर स्वयं से भी घृणा करने लग जाते हैं.

आत्म-घृणा या खुद को नापसंद करना एक ऐसा रोग है जो हमें अन्दर से बीमार कर देता है. इसके कारण न तो हम मदद के रास्ते खोजते है, न ही कहीं से सहायता लेने की हमारी सामर्थ्य रह जाती है. और फिर आज तो लगभग सभी को किसी न किसी सहायता की ज़रूरत है.

सवाल यह है की हम इस आत्म-घृणा से खुद को कैसे मुक्त करें?

सबसे पहले तो हम अपनी कमजोरियों पर खुले दिमाग से सोचना शुरू करें, भले ही दुनिया हमारी कमजोरियों स्वीकार करने को राज़ी हो या न हो. यानी की हमें खुद को स्वीकार करना सीखना होगा. इसके बाद ही हम अपनी अक्षमता और कमजोरियों से लड़ सकते हैं. पर पहले तो हमें खुद ही अपनी परवाह करना और अपनी ज़िम्मेदारी लेना सीखना होगा.